मंगलवार, मार्च 9

नीलगगन सी विस्तृत काया

नीलगगन सी विस्तृत काया 


एक शून्य है सबके भीतर

एक शून्य चहुँ ओर व्यापता, 

जाग गया जो भी पहले में 

दूजे में भी रहे जागता !


शून्य नहीं वह अंधकार मय 

ज्योतिर्मयी प्रभा से मंडित, 

पूर्ण सजग हो रहता योगी 

निज आभा में होकर प्रमुदित !


 उसी शून्य का नाम सुंदरम्

प्रेम-ज्ञान की जो मूरत है, 

परम अनादि-अनंत तत्व शिव 

अति मनहर धारे सूरत है !


रखता तीन गुणों को वश में  

मन अल्प, चंद्रमा लघु धारे, 

मेधा बहती गंगधार में 

भस्म काया पर, सर्प धारे !


नीलगगन सी विस्तृत काया 

व्यापक धरती-अंतरिक्ष में,  

शिव की महिमा शिव ही जाने 

शक्ति है अर्धांग  में जिसको !


 

24 टिप्‍पणियां:

  1. समाधि व साधना प्रतीक शिव।
    उम्दा रचना

    नई रचना

    जवाब देंहटाएं

  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 10 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. शून्य ही आदि है और शून्य ही अंत।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना..आध्यात्मिक एवम चिंतन से परिपूर्ण..

    जवाब देंहटाएं
  5. शून्य कितना विस्तृत । और हम शून्य में भटकते रहते ।
    सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. शून्य में कितना कुछ समाहित है देखनेवाली आँख ही उसे देख पाती है.

    जवाब देंहटाएं
  7. नीलगगन सी विस्तृत काया
    व्यापक धरती-अंतरिक्ष में,
    शिव की महिमा शिव ही जाने
    शक्ति है अर्धांग में जिसको !
    ----
    अति सुंदर सारगर्भित रचना अनीता जी।
    आपकी लेखनी से निसृत अलौकिक आभा बेहद पवित्र है।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत गहरी बात अनीता जी । शून्य है तभी हमारी तलाश अनवरत चलती है । वह लौकिकता में कभी नहीं भर पाता और एक भटकाव बना रहता है । उसकी पूर्त्ति केवल अनन्त से तादात्म्य होने पर ही हो सकती है जो बड़ा दुर्लभ है यही कारण है कि शान्ति व स्थिरता नहीं है । आपकी रचनाएं ऐसे ही पढ़कर निलक जाने वाली नहीं होतीं । यह बहुत ही गहरी और सुन्दर रचना है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविता की गहराई में जाकर उसके मर्म को अनुभव करना और उस पर प्रतिक्रिया देने के लिए स्वागत व आभार गिरिजा जी !

      हटाएं