शुक्रवार, जून 29

छू सकते आसमान





छू सकते आसमान 

जो मिला ही हुआ है
नहीं देखते आँख उठाकर भी
उसकी ओर..
बिछड़ने ही वाला है जो
 थामना चाहते हैं उसे
जो है, अस्वीकार करने में उसे
नहीं लगती पल भर की भी देर...
जो हो नहीं सकते
दौड़ लगाते हैं उसकी ओर...

 विद्यार्थी, बना रहे विद्यार्थी यदि
आत्महत्याएँ हों न शिक्षालयों में
पत्नी हो पाए एक पत्नी
 सीख ले पति, पति होना
बच जाएँ कितने घर गृहयुद्धों से
बच्चे निभाने दें
माँ पिता को अपनी भूमिका
तो प्रेम की एक डोर
बांधे रहे उन्हें आजीवन....

अध्यापक तज देता है अध्यापन
करने के लिये व्यापार
दुरूपयोग करे अधिकारी, अधिकार
बेमन से करे कृषि कर्म कृषक
हर इक गाँव बनना चाहता हो शहर..
हिल जायेगी सारी व्यवस्था
एक नन्हा सा पुर्जा भी मशीन का
 हिल जाये जब
दिख ही जाती है उसकी व्यर्थता

हम जो हैं, रखे गए हैं जहाँ
बेशकीमती है वह स्थान
छूया जा सकता है आकाश
उस स्थान से भी...
नाप सकते हैं सागरों की गहराई
उस स्थान से भी....

पूर्ण है हर कर्म
पूर्ण है हर प्राणी
पूर्ण है हर सम्बन्ध
यदि समझ है पूर्ण इंसान की...  



10 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आपका ||

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  2. पूर्ण है हर कर्म
    पूर्ण है हर प्राणी
    पूर्ण है हर सम्बन्ध
    यदि समझ है पूर्ण इंसान की... बेहतरीन विचार.

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  3. पूर्ण है हर कर्म
    पूर्ण है हर प्राणी
    पूर्ण है हर सम्बन्ध
    यदि समझ है पूर्ण इंसान की...बहुत सही कहा अनिता जी..सार्थक प्रस्तुति.

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  4. पूर्ण है हर कर्म
    पूर्ण है हर प्राणी
    पूर्ण है हर सम्बन्ध
    यदि समझ है पूर्ण इंसान की...

    बहुत सार्थक रचना ...
    एक एक शब्द मे गहन अर्थ छिपा है ...!!
    आभार इस प्रस्तुति के लिये ...!!

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  5. पहले समझदारी विकसित हो फिर अन्य विकास तो हो ही जाएगा।

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  6. पूर्ण है हर कर्म
    पूर्ण है हर प्राणी
    पूर्ण है हर सम्बन्ध
    यदि समझ है पूर्ण इंसान की...
    बहुत जरुरी है इन्सान का समझदार होना... सार्थक रचना... आभार

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  7. सत्य वचन....पूर्णता का अहसास ही सद्कर्म के लिए प्रेरित करता है.....सुन्दर कविता।

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  8. सही समझ सबसे पहली जरुरत है.
    सुंदर प्रस्तुति.

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  9. रविकर जी, दीदी, माहेश्वरी जी, इमरान, रचना जी, संध्या जी, मनोज जी, और अनुपमा जी आप सभी का अभिनन्दन और आभार !

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