मंगलवार, जून 9

का मना ?

का मना ?

क्या है मन में 
दो ही तो हैं यहाँ
एक ‘मैं’ दूजा ‘तू’
 ‘मैं’ है, तो यही कामना है  
अर्थात बंधन
 यदि ‘तू’ है तो मुक्ति !

‘मैं’  किसी का बचता नहीं 
‘तू’ कभी मिटता नहीं 
‘मैं’ लहर है ‘तू’ सागर है 
‘मैं’ किरण है ‘तू’ दिनकर है 
‘मैं’ युक्त है तुझसे पर जानता नहीं 
‘मैं’ कुछ नहीं ‘तू’ के बिना पर मानता नहीं 
‘मैं’ अँधेरा है ‘तू’ ज्योति है 
‘मैं’ दुई है ‘तू’ एकता है 
‘मैं’ मरे तो ‘तू’ हो जाता है 
‘तू’ रहे तो ‘मैं’ खो जाता है 

दो ही तो हैं वहाँ 
एक माया दूजा हरि 
माया ‘मैं’ को नचाती है 
हरि माया को छवाते हैं 
माया को हटा दो तो 
हरि सम्मुख आते हैं 
भक्त यह राज समझ जाते हैं 
उन्हें एक ही नजर आता है 
ज्ञानी यह भेद खोल देते हैं 
हरि उनका ‘मैं’ ही बन जाता है 

दो ही तो हैं जीवन में 
एक उत्सव दूजा संघर्ष 
जीवन एक उत्सव है जब ‘तू’ बड़ा है 
संघर्ष है जब ‘मैं’ खड़ा है 
जीवन एक लीला है 
जब माया की धुंध छंट जाती है 
एक पहेली है जब तक कामना सताती है 
कामना से अमना होने की यात्रा है साधना 
भावना से निरन्तर सुख पाना ही भक्ति ! 

6 टिप्‍पणियां:

  1. यही द्वैत संसार रचता है - सारी द्विधाओँ का मूल भी यही.मुझे तो लगता है इस द्वैत को एन्ज्वाय करना ही आनन्द है -फिर वह किसी रूप में हो ,भक्ति ,कविता ,कला इत्यादि.

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  2. ‘मैं’ मरे तो ‘तू’ हो जाता है
    ‘तू’ रहे तो ‘मैं’ खो जाता है लाजवाब!!!

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  3. दो ही तो हैं वहाँ
    एक माया दूजा हरि
    सुन्दर

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  4. मैं माया तू सब कुछ ... इस अंतर्द्वंद को बाखूबी लिखा है ... पर इंसान कोशिश ही कर सकता है मैं से तू की दिशा जाने के लिए ... काश माया की चुंध छंट सके ...

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