सोमवार, अक्तूबर 12

जो खिल रहा अनंत में

 जो खिल रहा अनंत में 

एक ही तो बात है 

एक ही तो राज है, 

एक को ही साधना 

एक से दिल बाँधना !


एक ही आनंद है 

वही जीवन छंद है, 

बह रहा मकरंद है 

मदिर कोई गंध है !


खिले वही अनंत में 

दुःख-विरह के अंत में, 

राधा-श्याम कंत में

ऋतुराजा वसंत में ! 

 

 रहे यदि बंटे हुए 

जीवन से कटे हुए, 

 तीर से बिंधे हुए 

सुख विलग रुंधे हुए !


राज से अनभिज्ञ है 

मूढ़ कोई विज्ञ है, 

एक की हो साधना 

उसी  की  आराधना !


9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. एक साधे सब सधे ... अति सुंदर ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं