मंगलवार, अगस्त 16

खुद की ही तलाश में हर दिल

खुद की ही तलाश में हर दिल 


'मैं' जितना 'तुझमें' रहता है 

उतने से ही मिल पाता है, 

खुद की ही तलाश में हर दिल 

संग दूजे जुड़ा करता है !

 

जितना हमने बाँटा जग में 

उतने पर ही होता हक़ है, 

बिन  बिखरे बदली कब बनती 

 इसमें नहीं मेघ  को शक है !

 

अंशी अंश मिलें इस ख़ातिर 

रूप हज़ारों धर लेते हैं,  

खुद को मंदिरों में सजाया 

खुद ही सजदे कर लेते हैं !

 

कोई नहीं सिवाय हमारे 

जिससे तिल भर का नाता है, 

भेद कभी खुल जाए जिस पर 

कण-कण  जगती  का भाता है !

 

सहज हुआ वह बंजारा फिर 

बस्ती-बस्ती गीत सुनाता , 

स्वयं  से मिलने की चाह में 

सारे  जग में घूमा-फिरता  !


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