शुक्रवार, जुलाई 25

गूँज किसी निर्दोष हँसी की

गूँज किसी निर्दोष हँसी की 


खन-खन करती पायलिया सी 

मधुर रुनझुनी घुँघरू वाली, 

खिल-खिल करती हँसी बिखरती 

ज्यों अंबर से वर्षा होती !

 

अंतर से फूटे ज्यों झरना 

अधरों से बिखरे ज्यों नगमा,

कानों को भी भरे हर्ष से 

अंतर को भी गुदगुद करती !

 

गूँज किसी निर्दोष हँसी की 

याद बनी इक  दिल में बसती,

कभी भिगोती आँखें बरबस 

कभी हृदय को भी नम करती !


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