गूँज किसी निर्दोष हँसी की
खन-खन करती पायलिया सी
मधुर रुनझुनी घुँघरू वाली,
खिल-खिल करती हँसी बिखरती
ज्यों अंबर से वर्षा होती !
अंतर से फूटे ज्यों झरना
अधरों से बिखरे ज्यों नगमा,
कानों को भी भरे हर्ष से
अंतर को भी गुदगुद करती !
गूँज किसी निर्दोष हँसी की
याद बनी इक दिल में बसती,
कभी भिगोती आँखें बरबस
कभी हृदय को भी नम करती !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी!
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंgoonj kisi nirdosh hansi ki? Intriguing!!
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