मंगलवार, नवंबर 7

चिनार की छाँव में

यात्रा विवरण - प्रथम भाग




चिनार की छाँव में 

एक बार कश्मीर जाने का ख़्वाब मन में न जाने कब से पल रहा था, पर पिछले कुछ दशकों में वहाँ के हालात देखते हुए इतने वर्षों में हम इस ख़्वाब को कभी हक़ीक़त में नहीं उतार पाये थे ।आज कश्मीर और शेष भारत के मध्य सभी दीवारें गिर रही हैं; मानवता और सांप्रदायिक सद्भाव की जीत हुई है।आतंकवाद का भयावह समय अतीत की बात हो चुका है।अमरनाथ यात्रा में लाखों लोग नि:शंक होकर शामिल हो रहे हैं। कश्मीर भारत का ताज है, और आज शान्तिप्रिय बन समृद्धि की राह पर चलकर वह पुन: अपनी  चमक वापस पा रहा है। पाँच साल पहले आर्टिकल ३७० हटने के बाद वहाँ विकास का एक नया क्रम आरंभ हुआ है; साथ ही जान-पहचान वाले कुछ लोगों की मुस्कुराती हुई तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखकर और समाचारों में वहाँ की बदली हुई फ़िज़ाँ के बारे में पढ़-सुनकर, एक शाम जुलाई के महीने में एक मित्र परिवार के साथ बातों-बातों में हमने भी कश्मीर यात्रा का टिकट कटा लिया। एक महीने बाद हम दो मित्र दंपतियों में एक अन्य दंपत्ति आ जुड़े। उन्हें चेन्नई से आकर दिल्ली से हमारे साथ श्रीनगर जाना था। इस तरह छह लोगों (गोपाल-ललिता, राघव-शांति और हम दोनों) का समूह मन में आशा और विश्वास भरे २६ अक्तूबर की सुबह अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा। 


सुबह तीन बजे हम बंगलुरू हवाई अड्डे के लिए रवाना हुए।इस बात का हमें जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि सुरक्षा जाँच के बाद प्रस्थान द्वार के पास बैठे हुए, बैंगलुरु के नये भव्य टर्मिनल के हॉल के शीशे की जो दीवार दूधिया दिखायी दे रही है, वह उसका स्वाभाविक रंग नहीं बल्कि बाहर का घना कोहरा है। कोहरे के कारण सभी उड़ानें काफ़ी देर से चलीं। लगभग पाँच घंटे हमने वहीं बिताये, जबकि हमारे चेन्नई वाले सहयात्री दिल्ली पहुँच कर श्रीनगर के लिए निकल पड़े थे। एयर इंडिया ने सुबह का स्वादिष्ट नाश्ता भी कराया और श्रीनगर के लिए वैकल्पिक उड़ान में सीट सुरक्षित करने में बहुत सहायता की।शाम को साढ़े छह बजे जब हम डल झील पर अपने निर्धारित हाउसबोट पर पहुँचे, राघव व शांतिजी  ने हमारा स्वागत किया, वे शिकारा पर झील की सैर करके लौट आये थे।सर्वप्रथम हमें गर्मागर्म कश्मीरी पेय कहवा पेश किया गया। रात्रि भोजन भी स्वादिष्ट था, जो साथ ही लगे एक अन्य हाउसबोट के एक कक्ष में परोसा गया था। देखते ही देखते हाउसबोट में ही कुछ दुकानें भी लग गयीं। नजीर अहमद कई प्रकार के कश्मीरी वस्त्र लाया था। हम सभी ने एक या दो शालें और स्टोल ख़रीदे।


आज यात्रा का दूसरा दिन है और हाउसबोट में रहने का पहला अवसर।नक्काशीदार लकड़ी से बना यह हाउसबोट कलात्मक सुंदर मोटे क़ालीनों, रेशमी पर्दों तथा लकड़ी के आकर्षक फ़र्नीचर के कारण किसी राजभवन के कक्ष सा प्रतीत होता है।अभी सुबह के साढ़े चार ही बजे हैं। ठंड की अधिकता के कारण हमारी नींद जल्दी खुल गई है। वैसे यहाँ का न्यूनतम तापमान फ़िलहाल आठ डिग्री है। विद्युत कंबल ऑन कर देने के कारण अब बिस्तर काफ़ी गर्म हो गया है और कमरे में ठंड का अहसास नहीं हो रहा है।अजान की लयबद्ध आवाज़ें आ रही हैं। हम बाहर निकले तो कुछ दुकानदार डल झील में शिकारों पर घूमते हुए फूल, फूलों के बीज, ऊनी वस्त्र, कहवा आदि बेचने आ गये।  नाश्ते के समय भी एक व्यापारी अखरोट की लकड़ी की बनी वस्तुएँ दिखा रहा था। हाउसबोट से ही शंकराचार्य मंदिर का सुंदर नजारा भी दिख रहा है, जो एक ऊँचे पर्वत पर स्थित है। खीर भवानी के एक मंदिर की बात भी यहाँ के एक कर्मचारी ने बतायी। आज आठ बजे हमें पहलगाम के लिए रवाना होना है, जो यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है। चार-पाँच घंटों में हम वहाँ पहुँच जाएँगे।   

क्रमश:


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 8 नवंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
    >>>>>>><<<<<<<

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  2. कश्मीर यात्रा का सुंदर वर्णन।

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  3. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ यात्रा का सुंदर वर्णन

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