बुधवार, नवंबर 29

पथ दिखाता चाँद नभ में

पथ दिखाता चाँद नभ में 


एक ज़रिया है कलम यह

हाथ भी थामे इसे जो, 

कौन जो लिखवा रहा है 

लिख रहा जो कौन है वो !


भाव बनकर जो उमड़ता 

बादलों सा कभी उर में, 

लहलहाती है फसल फिर 

अक्षरों की तब मनस में !

 

कभी सूखा मरुथलों सा 

ज्यों शब्द भी गुम हो गये,

हाथ में अपने कहाँ कुछ 

थाम ली  जब डोर  उसने !


चाह फिर क्योंकर जगायें 

हो रहा जो वही शुभ है, 

पथ दिखाता चाँद नभ में 

सूर्य  उतरा धरा पर है !


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