गुरुवार, जून 26

अब कैसी दूरी अंतर में

अब कैसी दूरी अंतर में


जान लिया जब भेद हृदय का 

अब कैसी दूरी अंतर में, 

अंतरिक्ष में ग्रह घूमें ज्यों 

चंद्र-सूर्य अपने अंबर में !


उड़ना चाहें जितना उड़ लें 

भीतर बसा आकाश अनंत, 

 मिलते ही जिससे हो जाता 

हर पीड़ा हर रंज  का अंत !


जीवन इक उपहार अनोखा 

तन, मन, मेधा वाहक जिसके,

श्वास-श्वास में वही गा रहा 

वही छिपा है चेतनता में !


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