सोमवार, जून 30

नीलगगन सा जो असीम है

नीलगगन सा जो असीम है


शब्दों से आहत होता मन 

शब्दों की सीमा कब जाने,

शब्द जहाँ तक जा सकते हैं 

मात्र वही स्वयं को जाने ! 


नीलगगन सा जो असीम है 

अंतर का आकाश न देखा, 

दिल को रोका चट्टानों से 

खिंच गयी जिन पर दुख रेखा ! 


एक ऊर्जा हैं अनाम सभी

क्योंकर इतना मोह नाम से, 

नाम-रूप बस छायायें हैं 

बिछड़ गयीं जो परम धाम से !


वैखरी, मध्यमा, पश्यंती  

के पार परावाणी बसती, 

माँ शारदा नित्य महिमा में 

वीणा हाथ में ले  विहँसती ! 


3 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द ही भाव शब्द ही नाव
    आहत होता मन ढूँढता छाँव
    --------
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं