सत्य
सत्य है
अखंड, एकरस
जानने वाला
जान रहा प्रतिपल
नहीं है भूत या भविष्य
उसके लिए
वहाँ कोई भेद नहीं
न दिशाओं का
न गुणों का
भावातीत, कालातीत व देशातीत
वह बस अपने आप में स्थित है
वह एक ही आधार है
पर वह सदा अबदल है
अभेद्य, अच्छेद्य
उसमें सब प्रतीति होती है
पर है कुछ नहीं
दिखता है यह द्वन्द्वों का जगत
यहाँ कुछ भी नहीं टिकता
जबकि उस एक का
कुछ भी नहीं घटता !
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