अकुलाहट
इक दर्द की चाहत की है
जो मन को बेसुध कर दे,
कुछ कहने, कुछ न कहने
दोनों का अंतर भर दे !
इक पीड़ा मांगी उर ने
जो भीतर तक छा जाये,
फिर वह सब जो आतुर
है, आने को बाहर आये !
इक बेचैनी सी हर पल
मन में सुगबुग करती हो,
इस रीते अंतर्मन का
कुछ खालीपन भरती हो !
इक अकुलाहट प्राणों में
इक प्यास हृदय में जागे,
सीधे सपाट मरुथल में
चंचल हरिणी सी भागे !
अनिता निहालानी
१७ नवम्बर २०१०
ऐसी प्यारी कविता तो रोज़ पढ़ने का मन करेगा ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया....
आपकी कविता हमेशा अपकी पहचान होती है...बहुत ही सादगी से बहुत ही गहरा संदेश देती यह रचना..
जवाब देंहटाएं......ट्रेफिक जाम के लिए.... ज़िम्मेदार कौन ?
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट पर आपका स्वागत है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहद सुन्दर कविता.....ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं -
"इक दर्द की चाहत की है
जो मन को बेसुध कर दे,
कुछ कहने, कुछ न कहने
दोनों का अंतर भर दे !"