शनिवार, नवंबर 27

बिन बाती इक दीप जला लें

बिन बाती इक दीप जला लें

मुट्ठी भर पल पास हमारे

अंजलि भर क्षण पाए सारे,

चाहे खो दें या फिर बो दें

वृक्ष उगा दें मन के द्वारे !


 एक फूल अमृत का खिला दें

अमरबेल पादप लहरा दें,

खो जाएँ फिर नभ अनंत में

दिग दिगंत में सुरभि उड़ा दें !


मदहोशी जो होश जगा दे

परम शांति के फूल उगा दे,

रग-रग में फिर नृत्य समाये

कण-कण मन के ज्योति समा दे !


ऐसा एक रहस्य जान लें

जीते जी इक स्वर्ग बना दें,

अंधियारा मिट मिले उजास 

बिन बाती इक दीप जला लें !


गीत चुके, पर वह असीम है

शब्द पुराने वह नवीन है,

पल-पल वह संवर्धित होता

परम प्रेम में वह प्रवीण है !


कह-कह कर भी कहा न जाये

सदा और, और हुआ जाये,

जितना हमने  चाहा उसको

लाख गुना वह प्रेम जताए !


अनिता निहलानी
२७ नवम्बर २०१०



7 टिप्‍पणियां:

  1. अमृत का इक फूल खिला दें
    अमरबेल पादप लहरा दें,
    खो जाएँ फिर नभ अनंत में
    दिग दिगंत में सुरभि उड़ा दें !
    chalo chaand ke paar chalen
    sitaaron kee saugaat le aayen
    her andhere per sitaaren tank de

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  2. Bahut hi saargarbhi ek praudh rachna jo kai sambhaawnaon ko samete hue samvednaon ko jhkjhorne ka kary karti hai.sab kuchh tumhaare haath hai, karna to swayan padega -

    'चाहे खो दें या फिर बो दें वृक्ष उगा दें मन के द्वारे !
    अमृत का इक फूल खिला दें अमरबेल पादप लहरा दें, खो जाएँ फिर नभ अनंत में दिग दिगंत में सुरभि उड़ा दें !
    मदहोशी जो होश जगा दे परम शांति के फूल उगा दे, रग रग में फिर नृत्य समाये कण-कण मन के ज्योति समा दे !
    ऐसा एक रहस्य जान लें जीते जी यहाँ स्वर्ग बना दें, अंधियारे मिट मिले उजाला बिन बाती इक दीप जला लें !"
    Bahut khoob shabd apni baat kahne me poori tarah samrth aur saksham.
    aur yah utkarsh pr pahuchtaa hai jb lekhika antm astr ka prayog bhartiy andaaz me katri hain -
    कह-कह कर भी कहा न जाये सदा और, और हो जाये, जितना हम चाहते उसको लाख गुना वह प्रेम जताए !

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  3. अमृत का इक फूल खिला दें
    अमरबेल पादप लहरा दें,
    खो जाएँ फिर नभ अनंत में
    दिग दिगंत में सुरभि उड़ा दें !


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  4. आदरणीय डाक्टर तिवारी, रश्मिजी व संगीता जी, आप सभी का स्वागत व आभार !

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  5. अंधियारे मिट मिले उजाला
    बिन बाती इक दीप जला लें !
    ... bahut sundar !!!

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  6. अनीता जी,

    सुन्दर कविता....

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