मंगलवार, दिसंबर 7

बन बहेंगे प्रेम दरिया

बन बहेंगे प्रेम दरिया

प्रेम क्या है ? पूछता दिल
प्रश्न ही यह तो अधूरा
पूछना ही है अगर तो
हाथ अपने दिल पे रखें, और पूछें

कौन है यह प्रश्नकर्ता ?
कौन है जो प्रेम करता ?
कौन है जो जानकर भी
है सदा अनजान बनता ?

प्रश्न चाहे हों हजारों
सब अबूझे ही रहेंगे,
मूल को हम खोजते न
फूल की हैं चाह करते !

बीज रोपें मूल पकड़ें
कौन है जो प्रेम चाहे ?
कौन जो अकुला रहा है ?
कौन छल करता है खुद से ?
कौन जो पछता रहा है ?

और जैसे इक कुदाली
खोदती जाती धरा को
स्रोत मिलता !
फूटती जल धार जैसे
प्रेम भीतर से उगेगा!
प्रेम से अंतर भरेगा !
फिर न पूछेंगे किसी से
प्रेम क्या है ?
बन बहेंगे प्रेम दरिया !

अनिता निहालानी
७ दिसंबर २०१०

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर उड़ान है।बहुत भावपूर्ण।

    प्रश्न चाहे हों हजारों
    सब अबूझे ही रहेंगे,
    मूल को हम खोजते न
    फूल की हैं चाह करते !

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  2. प्रेम क्या है ? पूछता दिल
    प्रश्न ही यह तो अधूरा
    पूछना ही है अगर तो
    हाथ अपने दिल पे रखें, और पूछें

    वाह जी वाह..........
    प्रेम की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रश्न चाहे हों हजारों
    सब अबूझे ही रहेंगे,
    मूल को हम खोजते न
    फूल की हैं चाह करते !

    बहुत सुन्दर रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  4. अनीता जी,

    सलाम है आपके फन को.....खुद आपको महफूज़ रखे.....सच पूरी कविता में मैं कहीं ये नहीं ढूंढ पाया की कौन सी पंक्ति ज्यादा अच्छी है.....चूँकि आपकी कविता का सर्जन चैतन्य से होता है....कहीं कोई कमी नहीं और एक रसधार में बहाती है पाठक को......एक बार फिर से सलाम है आपको|

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