गुरुवार, दिसंबर 16

आईना इक यह जगत है

आईना इक यह जगत है


दर्द तो हम खुद बनाते, ढूंढते फिर खूंटियां
कभी इस पर कभी उस पर, टांगते मजबूरियाँ !

खो रहे खुद सुकूं दिल का, नींद अपनी चैन मन का
कोसते फिर इस जहाँ को, खुद से हैं जबकि खफा !

आदमी की बेबसी की, खत्म हद होती नहीं
खुद से है अनजान देखे, दूसरों की हर कमी !

बाँटना फितरत हमारी, हैं खुदा की जात के
मुस्कुराहट न मिली, शिकवे गिले ही बांटते !

इक के भीतर दूसरा है, दूसरे में खुद छुपा
खुद से है जो दूर दिल वह, सोचता सब को जुदा !

जो कमी हममें नहीं, वह आ नजर सकती नहीं
आइना इक यह जगत है, अक्स अपना हर कहीं !

अनिता निहालानी
१६ दिसंबर २०१०

8 टिप्‍पणियां:

  1. आदमी की बेबसी की, खत्म हद होती नहीं
    खुद से है अनजान देखे, दूसरों की हर कमी !

    Bahut khoob kyaa baat kah di aapne. aapke poore blog ka marm is ek hi line me hai..shesh to isi ki byaakhyaa hai...Bahut hi uchch koti ki sar garbhi rachna jise baar baar padhne ka mn karta hai...

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय अनिता जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  3. अनिता ji
    माँ की परिभाषा-
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब लिखा है ---जो कमी हममें नहीं, वह आ नजर सकती नहीं
    आइना इक यह जगत है, अक्स अपना हर कहीं

    जवाब देंहटाएं
  5. खो रहे खुद सुकूं दिल का, नींद अपनी चैन मन का
    कोसते फिर इस जहाँ को, खुद से हैं जबकि खफा !

    बहुत सटीक लिखा है ..हर छंद असलियत कह रहा है ..

    जवाब देंहटाएं
  6. आदमी की बेबसी की, खत्म हद होती नहीं
    खुद से है अनजान देखे, दूसरों की हर कमी !
    जो कमी हममें नहीं, वह आ नजर सकती नहीं
    आइना इक यह जगत है, अक्स अपना हर कहीं !
    क्या बात कही आपने अनीता जी। हर पंक्ति बहुत गहरी बात कह रही है। अभी दस मिनट पहले एक श्रीमान जी गुण-दोष सिखाकर गए थे मुझे। तो मूड थोड़ा ऑफ़ था। आपकी रचना पढकर मन हरा हो गया। सही कहा --- खुद से अनजान सख्स दूसरों की कमी लेकर पीछे पड़े रहते हैं। इन्हें आइना देखना भी नहीं आता।

    जवाब देंहटाएं
  7. आइना इक यह जगत है, अक्स अपना हर कहीं !
    वाह!
    कितनी सुन्दर बात सहजता से कही है!

    जवाब देंहटाएं
  8. अनीता जी,

    देर से आने की माफ़ी.....दरअसल कुछ दिनों के लिए बाहर गया था.......आपकी सभी रचनाएँ पड़ी......सारी एक से बढकर एक लगीं......जैसे आप हमेशा ही लाकिहती हैं......पर ये कुछ अलग लगी इसलिए अपनी टिप्पणी बिलकुल नयी पोस्ट पर न देकर इस पर दे रहा हूँ.......खास इसलिए क्योंकि ये पोस्ट आपने खालिस उर्दू में लिखी है......हिंदी की ही तरह आपकी उर्दू पर भी शानदार पकड़ के लिए आप बधाई की पात्र हैं.....मेरी शुभकामनायें|

    जवाब देंहटाएं