सोमवार, सितंबर 12

दिल, दौलत और दुनिया


दिल, दौलत और दुनिया


इक्कीसवीं सदी में सभ्य हो गया है आदमी
राजी है वह धन की खातिर 
ईमां भी खोने को
बढता रहे बस तिजोरी का रुतबा
इस खातिर वह  
नींदे ही नहीं गंवाता
रिश्ते भी गंवाता है.....
भरने को तो एक ही शै
खुदा ने ऐसी बनाई
झुकती है जिसके
सामने खुद उसकी खुदाई
दुनिया की हर दौलत
जिसके सामने शरमाई
 मुहब्बत ही वह शै है
जो जितनी लुटाई
उतनी ही बढती है
उसकी कमाई
यह उल्फत की दुनिया
उलट है इस दुनिया से
यहाँ जिसने लुटाया उसने
पाया ही पाया....
कौडियों के मोल बेच इसे
फिर भी यह मानव इतराया....
भेद सृष्टि का जब समझ न पाया....


 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बलकुल सच है ..........पर आज की इस दुनिया में शयद ही कोई इसका मोल समझता है.........जज्बाती आदमी को .......भावुक व्यक्ति को दुनिया वाले आजकल पागल समझते हैं|

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  2. जल्द ही यदि अन्ना हजारे का आन्दोलन सफल हो गया तो धन की खातिर ईमां भी खोने का खतरा कम हो जायेगा.

    बेहतरीन भाव पेश किये है कविता के माध्यम से. बधाई.

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  3. यह उल्फत की दुनिया
    उलट है इस दुनिया से
    यहाँ जिसने लुटाया उसने
    पाया ही पाया....
    कौडियों के मोल बेच इसे
    फिर भी यह मानव इतराया....
    भेद सृष्टि का जब समझ न पाया....

    बेहतरीन,दिल को छूती इस अभिव्यक्ति के लिए
    बहुत बहुत आभार अनीता जी.

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  4. अब नासमझ को कौन समझाए , एक सशक्त सन्देश देती हुई रचना आभार

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  5. सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
    देत बधाई प्रेम से, हो प्रस्तुति-अविराम ||

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  6. असली दौलत की पहचान ही नहीं हमें, अगर होती तो कौड़ियों के पीछे नहीं भागते । ...बहुत सुंदर रचना

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  7. Anita jee ek baar fir आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
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  8. aisi rachnaon ko yaha share karne ke liye bahut-bahut dhnyawaad... isse jyada aur kuch nahi likh sakti...

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  9. सबसे पहले हिंदी दिवस की शुभकामनायें /
    यहाँ जिसने लुटाया उसने
    पाया ही पाया....
    कौडियों के मोल बेच इसे
    फिर भी यह मानव इतराया....
    भेद सृष्टि का जब समझ न पाया...
    बहुत ही सुंदर और गहन सोच को उजागर करती हुई बेमिसाल रचना /बहुत बधाई आपको /
    मेरी नई पोस्ट हिंदी दिवस पर लिखी पर आपका स्वागत है /
    http://prernaargal.blogspot.com/2011/09/ke.html/ आभार/

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