शुक्रवार, दिसंबर 2

चलो चलें उस तट हो आएं


चलो चलें उस तट हो आएं 

एक शमा जलती रहती है 
एक नदी बहती रहती है,
एक ध्वनि मद्धिम-मद्धिम सी 
कानों में धुन सी बजती है !

चलो चलें उस तट हो आएं 
स्वयं भी एक ज्योति बन जाएँ,
भँवरा बन गुंजाएं आलम 
मन की तितली यह कहती है !

कुसुमों ने ज्यों गन्ध छुपायी 
सागर में मोती रहता है,
स्वर्णिम आभा भावों में भर 
पलकों से धारा बहती है !

गगन समेटे अनगिन तारे 
मीन बसे लहरों में रंगीं,
जीवन कितने राज छुपाये 
पल-पल यह सृष्टि गहती है !

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