आशा ज्योति जलानी है
खेतों में झूम रही फसलें 
कोई भंगड़ा, गिद्दा, न डाले,  
चुप बैठे ढोल, मंजीरे भी
इस बरस बैसाखी सूनी है !
यह किसकी नजर लगी जग को 
नदियों, सरवर के तट तकते, 
नहीं आचमन न कोई डुबकी 
यह कैसी छायी उदासी है !
बीहू का उत्सव भी फीका 
कदमों को किस ने रोका है,
आया 'पहला बैसाख'  लेकिन  
कोई जुलूस ना मेला है !
केरल में विशु गुमसुम मनता
यह कैसा सन्नाटा छाया, 
संशय के बादल हों कितने  
पर आशा ज्योति जलानी है !

 
स्वागत व आभार !
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