इक राह नई चुननी है 
इक राह नई चुननी है 
रक्षित दुर्ग बनाना है, 
इस अनजाने दुश्मन से
सबको ही बचाना है !
धीरज की बाँह पकड़कर 
सहना है हर अनुशासन ,
मन ना कोई विचलित हो
 शुभ संदेश सुनाना है !
थोड़े में गुजारा हो 
मिल बांट के हम खाएँ,
कोई भी अकेला हो 
उसे ढूंढ के लाना है !
मीलों की भले दूरी 
दिल से नहीं दूर रहें, 
करुणा जगे अंतर में 
यही फूल खिलाना है !

 
बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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