शनिवार, अप्रैल 25

एक है दूजे के लिए

एक है दूजे के लिए 

सूरज जलता है, तपता है 
ताकि जीवन की ज्योति जले धरा पर !
धरती गतिमय है रात-दिन 
बिना क्लांत हुए 
ताकि मौसमों का आना-जाना लगा रहे !
जब वह निकट हो जाती है सूर्य के 
ग्रीष्म की हवाएँ बहती हैं 
दूर हो जाती है तो पर्वतों पर 
बहने लगते है हिम के झंझावात 
मौसम बदलते हैं 
ताकि हरियाली और जीवन खिलता रहे !
हरे-भरे चारागाह भोजन देते हैं 
पशुओं को 
 वनस्पति और प्राणी एक-दूसरे के लिए हैं !
पर समय की धारा में 
जाने कब ऐसा हुआ कि
मानव जीने लगा
 मात्र अपने लिए ! 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को     शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683)    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब ,सुंदर सृजन अनीता जी ,सादर नमन

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