सोमवार, फ़रवरी 14

प्रेम पंख देता है मन को



प्रेम पंख देता है मन को
प्रेमिल मस्ती में डोले मन
क्या डोलेगी यह पुरवैया,
प्रेम पुलक बन लहराए तन
शरमाए सागर में नैया !

प्रेम पंख देता है मन को
उड़ने का सम्बल भर देता,
पल में पथ के कंट जाल हर
फूलों कलियों से भर देता !

हृदय गुफा का द्वार खोलता
अमृत घट बना मधु बरसाए,
सहज जगाता दिव्य चेतना
‘कोई है’ जो नजर न आये !

प्रेम से ही सृष्टि का वर्तन
इससे पूरित जग का हर कण,
प्रेम ऊर्जा व्याप रही है
यही सँवारे प्रतिपल जीवन !

एक प्रेम की ही सत्ता थी
जब नहीं था कुछ भी सृष्टि में,
होता एक अनेक प्रेम वश
ज्यों बदली बदले बूँदों में !

जैसे माँ निज अंग से रचे 
बाल को प्रेम सुधा पिलाती,
प्रेम की धार बहती अविरल
जग के कण-कण को नहलाती !

वही कृष्ण राधा बन डोले
प्रेम रसिक बन अंतर खोले
मीरा की वीणा का सुर वह
बिना मोल के कान्हा तोले !

बालक,  युवा, किशोर, वृद्ध हो
हुआ प्रेम से ही पोषित उर  
हर आत्मा की चाहत प्रेम 
खिलती भेंट प्रीत की पाकर  !

22 टिप्‍पणियां:

  1. वही कृष्ण राधा बन डोले
    प्रेम रसिक बन अंतर खोले
    मीरा की वीणा का सुर वह
    बिना मोल के कान्हा तोले !
    अत्यंत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-2-22) को पाश्चात्य प्रेमदिवस का रंग" (चर्चा अंक 4342)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. इस प्रेम पुलक में दिव्य पंख पर बैठ उड़ चला मन। अति सुन्दर उड़ान...

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  5. हृदय गुफा का द्वार खोलता
    अमृत घट बना मधु बरसाए,
    सहज जगाता दिव्य चेतना
    ‘कोई है’ जो नजर न आये !
    प्रेम का वर्णन करती हुई
    बहुत ही खूबसूरत रचना😍💓

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    1. मनीषा जी, इस सुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार!

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  6. अहा !
    बहुत सुंदर रचना आदरणीया

    मंगलकामनाएं
    🌹🌻🌷

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  7. हमारे देश में खजुराहो के मन्दिरों में और कोणार्क के मन्दिर में काम-कला की सभी चेष्टाओं को दर्शाया गया है. फिर ऐसा क्या हुआ कि हम प्रेमी-युगल के पीछे लाठी लेकर दौड़ पड़ते हैं या फिर खाप पंचायत में उन्हें सज़ाए-मौत सुना देते हैं?
    प्रेम के प्रति दृष्टिकोण में नई पीढ़ी से ज़्यादा तो हम बुजुर्गों को बदलना होगा.

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  8. बालक, युवा, किशोर, वृद्ध हो
    हुआ प्रेम से ही पोषित उर
    हर आत्मा की चाहत प्रेम
    खिलती भेंट प्रीत की पाकर ! सुंदर उद्गार । प्रेम के प्रति सुंदर सराहनीय दृष्टिकोण ।

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  9. हर आत्मा की चाहत प्रेम
    खिलती भेंट प्रीत की पाकर !
    खूबसूरत रचना

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  10. वाह!प्रेम से शराबोर प्रेमा अभिव्यक्ति।
    सादर

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  11. बहुत सुंदर प्रिय अनीता जी। प्रेम एक रूप अनेक। सही कहाआदरणीय गोपेश जी ने- प्रेम को शक्ति और धन से संपन्न लोगों ने सदैव बंधक बनाकर रखने की कोशिश की। प्रेमी युगल दुनियां की आँखों में हमेशा खटके। पर, आपकी रचना बहुत मोहक और भावपूर्ण है। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌷🌷

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  12. जिज्ञासा जी, सविता जी, सधु जी, अनीता जी, रेणु जी व गोपेश जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!

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  13. प्रेम के अनेक चित्र दिखा दिए । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।।

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