शुक्रवार, सितंबर 2

रास्ते हैं, यह बहुत है

रास्ते हैं, यह बहुत है
 

​​मंज़िलें हों दूर कितनीं  

मंज़िलें हैं, यह बहुत है, 

चल पड़े हैं ग़म नहीं अब 

रास्ते हैं, यह बहुत है !


पथ कँटीला पाँव हारे 

जोश दिल में, यह बहुत है, 

नज़र न आए तो क्या है 

साथ है तू, यह बहुत है !


इक अनोखी चीज़ दुनिया 

जश्न मनते, यह बहुत है, 

कब किसी की हुईं पूरी 

चाहतें हैं, यह बहुत है !


उम्र केवल एक गिनती 

बचपन जवाँ, यह बहुत है, 

अजनबी कोई नहीं अब 

तू यहीं है, यह बहुत है !




18 टिप्‍पणियां:

  1. अजनबी कोई नहीं अब

    तू यहीं है, यह बहुत है !
    वाह!

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  2. रास्ते कभी खत्म नहीं होते। हम ही एक रास्ते पे भटकते हैं और दोबारा कोई रास्ता ढूंढना ही नहीं चाहते । बहुत ही प्रेरक रचना ।

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    1. सही कह रही हैं आप जिज्ञासा जी, स्वागत है!

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  3. 'कब किसी की हुईं पूरी चाहते हैं ,यह बहुत हैं! वाह!

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  4. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. ईश्वर हमेशा साथ है भले ही वो दिखाई न दे ।

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  6. गुन गुनाने वाली सारगर्भित कविता।

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    1. सुंदर प्रतिक्रिया हेतु स्वागत व आभार दीदी!

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