मंगलवार, अक्तूबर 11

यज्ञ भीतर चल रहा है

यज्ञ भीतर चल रहा है



श्वास समिधा बन सँवरती

प्रीत जगती की सुलगती,

मोह कितना छल रहा था

सहज सुख अब पल रहा है !


मंत्र भी गूजें अहर्निश

ज्योति माला है समर्पित,

कामना ज्वर जल रहा था

अहम मिथ्या गल रहा है !


अनवरत यह यज्ञ चलता

प्राण दीपक नित्य जलता,

पास न कुछ हल रहा था

उम्र सूरज ढल रहा है !


खोजता था मन युगों से

छला गया स्वर्ण मृगों से,

व्यर्थ भीतर मल रहा था

परम सत्य पल रहा है !


चाह थी नीले गगन की

मृत्यू देखी हर सपन की,

स्नेह घृत भी डल रहा था

द्वैत अब तो खल रहा है !


14 टिप्‍पणियां:

  1. चाह थी नीले गगन की

    मृत्यू देखी हर सपन की,

    सुंदर काव्य पंक्तियां

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 12 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  3. मंत्र भी गूजें अहर्निश

    ज्योति माला है समर्पित,

    कामना ज्वर जल रहा था

    अहम मिथ्या गल रहा है !


    अहम को स्वाहाः कर दे तब तो जीवन ही सफल हो जाये

    बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति अनीता जी,सादर नमन

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  4. श्वास समिधा बन सँवरती
    प्रीत जगती की सुलगती,
    मोह कितना छल रहा था
    सहज सुख अब पल रहा है !
    सुंदर

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.10.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4580 में दी जाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  6. सारगर्भित दर्शन की काव्यात्मक अभिव्यक्ति।
    बहुत सुंदर अनिता जी।

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