सोमवार, अक्तूबर 23

शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई



  शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई 



खुद से खुद की जब पहचान हुई

ज़िंदगी फ़ज़्र की ज्यों अजान हुई 


जिन्हें गुरेज था चंद मुलाक़ातों से 

गहरी हरेक से जान-पहचान हुई 


तर था दामन अश्रुओं से जिनका 

मोहक अदा सहज मुस्कान हुई 


दिलोजां लुटाते हैं अब जमाने पर

  शिकायत ख़ुद से भी अनजान हुई 


फासले ही हर दर्द का सबब बनते 

मिटी दूरी सुलह सबके दरम्यान हुई 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25अक्टूबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम

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  2. आज तो एक खूबसूरत गजल हो गई ... बहुत खूब ...

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