रविवार, सितंबर 8

गणपति हैं आधार जगत के

गणपति हैं आधार जगत के  


 चले रौंदते हर बाधा को

गणपति अनुपम ज्ञान प्रदाता

पावन करते सारे जग को

रस बिखराते हैं मुदिता का !


माँ की तन-माटी से उपजे 

मानो गुरुत्व शक्ति भूमि की,

गणनायक नित जुड़े धरा से 

जिस कारण धुरी पर टिकी हुई !


वचन दिया जो गौरी माँ को  

शीश कटाया उसकी खातिर, 

अहंकार तज शिव को जाना  

बुद्धि हुई सुबुद्धि बन जाहिर !


मूलाधार में छिपे हुए हैं  

इंद्रियों को पोषित करते, 

 खो जाते मन की हलचल में

दिशा ज्ञान मानव को देते ! 


अष्ट विनायक आनंदमय हैं  

तीनों कालों के वह ज्ञाता, 

निर्विकल्प, अलख निरंजन 

कौतुक से परिपूर्ण विधाता !


ऐसा ही प्रयास हो अपना 

श्री गणेश जीवन में भर लें, 

वाणी शुद्ध, सरल, मीठी हो 

 रुचि हर एक सुरुचि में बदले !


यदि छल-छिद्र नहीं हों मन में  

मोह-मान के पार हुआ हो, 

उसी ह्रदय में डालें डेरा 

हर संकट में धीर खड़ा जो !


बहिर्मुखी जब अंतर्मन है 

भय से नित्य काँपता रहता, 

बाहर शक्ति बिखेरे पल-पल 

मन में उतना बल घट जाता !


ह्रदय केंद्रित, सहज शांत मन

आत्मस्वरूप गणपति प्रकटते,  

जिनसे जग सारा प्रकट हुआ  

जो सबके रक्षक बने हुए !


 उर में प्रेम, भाव में शुचिता

तपस पूर्ण हो जीवन सबका, 

एक तत्त्व है सबके भीतर 

भेदभाव मिट जाये मन का !


शक्ति जगे उनके अनुग्रह से

अध्यात्म का बढ़े ख़ज़ाना, 

सत्व और पवित्रता जागे 

बाँधें बंधन पावनता का !


रोग-विषाद न हों जीवन में

संबंधों में आये गरिमा,

धरती के प्रति पूज्य भाव हो 

अष्टविनायक की हो महिमा !


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