सोमवार, जून 2

भिगो गई है प्रीत की धारा


भिगो गई है प्रीत की धारा 


दिल की गहराई में बसता 

सत्य एक ही, प्रेम एक ही, 

दिया किसी ने, चखा किसी ने

सुख-समता का स्वाद एक ही !


जैसे जल नदिया का या फिर 

अंबर में बादल बन रहता, 

भाव प्रीत का हर इक दिल में 

कभी बह रहा, कभी बरसता !


उसी चेतना से आयी थी

उसी चेतना को कर पोषित, 

भिगो गई शुभ प्रीत की धारा 

मन-प्राण हुए सबके हर्षित !


शुभ भावना जगी जो भीतर 

प्रसून मैत्री के जो पुष्पित, 

अवसर पाकर मुखर हुए जब

करें ह्रदय को पुन: सुवासित !

7 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यन्त सुंदर सृष्टि सार्थक हो गई पुलकित हृदयभाव सहज सरल और सुंदर ।

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  2. बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !

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  3. प्रेम दुनिया की सर्वोच्च सता है। सृष्टि की हर गतिविधि प्रेम से संचालित है। सुंदर रचना के लिए बधाई अनीता जी🙏

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