भिगो गई है प्रीत की धारा
दिल की गहराई में बसता
सत्य एक ही, प्रेम एक ही,
दिया किसी ने, चखा किसी ने
सुख-समता का स्वाद एक ही !
जैसे जल नदिया का या फिर
अंबर में बादल बन रहता,
भाव प्रीत का हर इक दिल में
कभी बह रहा, कभी बरसता !
उसी चेतना से आयी थी
उसी चेतना को कर पोषित,
भिगो गई शुभ प्रीत की धारा
मन-प्राण हुए सबके हर्षित !
शुभ भावना जगी जो भीतर
प्रसून मैत्री के जो पुष्पित,
अवसर पाकर मुखर हुए जब
करें ह्रदय को पुन: सुवासित !
अत्यन्त सुंदर सृष्टि सार्थक हो गई पुलकित हृदयभाव सहज सरल और सुंदर ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
जवाब देंहटाएंप्रेम दुनिया की सर्वोच्च सता है। सृष्टि की हर गतिविधि प्रेम से संचालित है। सुंदर रचना के लिए बधाई अनीता जी🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रेणु जी !
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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