रविवार, जून 22

सपना और संसार

सपना और संसार 

उनकी सांसें आपस में घुल गयी हैं
मन भी हर क्षण जुड़ता है
और अब पकड़ इतनी मजबूत हो गयी है कि
दुनिया की बड़ी से बड़ी तलवार भी इसे काट नहीं सकती
कोई किसी को यूँ ही नहीं सौप देता
अपना आप, अपनी आत्मा
प्यार के अनमोल खजाने को पाकर ही 
अपना सब कुछ खाली कर दिया है
किसी के नाम लिख दिया है मन को
फिर सपने सा क्यों लगता है कभी–कभी संसार
शायद इसलिए कि यहाँ सब कुछ बदलने वाला है

3 टिप्‍पणियां: