मंगलवार, सितंबर 23

एक वही तो डोल रहा है

एक वही तो डोल रहा है 


गा-गा कर थक गये सयाने

बुद्धि से तेज गति है जिसकी, 

जीवन एक सुगंध की खानि 

कानों में आ बोल रहा है !


स्थूल-सूक्ष्म दोनों के पीछे 

लघु-अनंत दोनों का कारण, 

चक्षुओं से अदृश्य हुआ जो 

एक वही तो डोल रहा है !


अपनी महिमा में ठहरा है 

महासागरों से गहरा है, 

अपनी महिमा ख़ुद ही जाने 

रस कण-कण में घोल रहा है !

 

वही हुआ मैं, वही हुए तुम 

धरती, अंबर, अगन, अनिल भी, 

जल जब चंचल गति से दौड़े 

राज स्वयं ही खोल रहा है !


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