क्योंकि तुम ख़ुशी के परमाणुओं से बने हो
जिसमें प्रेम के परमाणु भी हैं
या वे बदल जाते हैं प्रेम में
कई आयामी हैं वे
जैसे प्रकाश की एक श्वेत किरण
सात रंगों में टूट जाती है
प्रिज्म से गुजरने पर
आत्मज्योति में भी सात गुण छिपे हैं
कभी प्रेम का लाल रंग
मुखर हो उठता है चिदाकाश में
जब भावनाओं के श्वेत निर्मल मेघ
उमड़ते घुमड़ते हैं
कभी शांति का नीलवर्ण
शक्ति का केसरिया भी है यहाँ
और ज्ञान का पीतवर्ण भी
शुद्धता का बैंगनी रंग कितना मोहक है
सुख की हरि फसल भी लहलहाती है
अंतर आकाश सुशोभित है
इन सात रंगों से
जहाँ से सात सुरों की गूंज भी आती है !
सुरम्य
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसुंदर जब तक परमाणु कण है | बम ना हो पाए :) :)
जवाब देंहटाएंबुद्धि जब तक आत्मा से जुड़ी है, तब तक तो नहीं, वरना कुछ कह नहीं सकते, स्वागत व आभार !!
हटाएंवाह-वाह अति मनमोहक रंग, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह
सादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १४ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंमनमोहक भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंSuch delightful imagery and vibrance!
जवाब देंहटाएंWelcome and Thanks !!
हटाएंआत्मज्योति और भावनाओं के विभिन्न रंग !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
स्वागत व आभार सुधा जी!
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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