बुधवार, अक्टूबर 15

मुक्ति और पीड़ा


मुक्ति और पीड़ा 


नहीं है ज्ञात, कुछ भी 

अज्ञात बहुत भारी है 

सृष्टि चला रहा है कौन 

किसने की प्रलय की तैयारी है? 


कौन पीड़ा के बीज बोता 

कौन अहंकार जगाता 

कौन करता मुक्ति की आकांक्षा

कौन ठगा से देखता रहा जाता!


हर दर्द एक पुकार ही तो है 

जो समाधान के लिए उठी है 

हर दुख एक द्वार ही तो है 

जो मुक्ति की ओर ले जाने आया है !


वह कोई भी हो 

सदा साथ-साथ चलता है 

जिसकी आँखों में 

ब्रह्मांड का स्वप्न पलता है !


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