शुक्रवार, अक्टूबर 17

उड़ें गगन में मुक्त हुए से

उड़ें गगन में मुक्त हुए से


निज नूतन नीड़ की ख़ुशी में 

असली घर भी याद रहेगा ?

आज नहीं तो कल जाना है 

‘जाओ’ यह संसार कहेगा !


ह्रदयहीन तब लगता जग

जब अपने ही बेगाने होंगे, 

बेबस से हम देखें ख़ुद को 

उस घर से अनजाने होंगे !


दुनिया एक सराय मात्र है 

बोरा-बिस्तर बाँधों अपना, 

सोये-सोये उमर बिता दी 

कब से देख रहे हो सपना !


सच से आँखें चार करो तुम 

वरना फिर पछताना होगा, 

जीते जी ही मरना आये 

इक दिन जग से जाना होगा !


याद रहे यदि ‘असली घर’ तो 

ज़ंजीर नहीं बाँधें पग में, 

 उड़ें गगन में मुक्त हुए से

हित सबके ही साधें जग में !



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