उड़ें गगन में मुक्त हुए से
निज नूतन नीड़ की ख़ुशी में
असली घर भी याद रहेगा ?
आज नहीं तो कल जाना है
‘जाओ’ यह संसार कहेगा !
ह्रदयहीन तब लगता जग
जब अपने ही बेगाने होंगे,
बेबस से हम देखें ख़ुद को
उस घर से अनजाने होंगे !
दुनिया एक सराय मात्र है
बोरा-बिस्तर बाँधों अपना,
सोये-सोये उमर बिता दी
कब से देख रहे हो सपना !
सच से आँखें चार करो तुम
वरना फिर पछताना होगा,
जीते जी ही मरना आये
इक दिन जग से जाना होगा !
याद रहे यदि ‘असली घर’ तो
ज़ंजीर नहीं बाँधें पग में,
उड़ें गगन में मुक्त हुए से
हित सबके ही साधें जग में !
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