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शुक्रवार, मार्च 9

हम जा कहाँ रहे हैं...


हम जा कहाँ रहे हैं...

कांगो में हुआ भीषण विस्फोट
एक नन्हें बच्चे को दिया अमानवीय दंड
कांप जाता है समाचार पढ़ के मन
ईरान चाहता है बम बनाना
चीन सैन्य शक्ति को बढाना
कहाँ गयी है मानवी बुद्धि
और क्षमता विवेक की
किसके खिलाफ युद्ध छेड़ा है हमने
हम जा कहाँ रहे हैं...

टीवी का स्विच बंद कर देती हूँ
पलट देती हूँ अखबार को उल्टा
पर हत्या और हिंसा की घटनाएँ तो कम नहीं होतीं
पूर्व अधिकारी के यहाँ मिलते हैं करोडों
 दूर के रिश्तेदारों के नाम जब फ़्लैट लिखा जाता है  
तब ठंड में ठिठुर कर मर जाता है
कोई बच्चा, बेघर ठंडी सड़क पर
सर्दियों की रात में.....
जब सेना की साज-सज्जा में धन लुटाया जा रहा है
गरीब, बेरोजगार किसान आत्महत्या करने पर विवश हैं
क्यों है इतनी विषमता
इतना अन्याय
समझ नहीं पाता मन
किशोरों के हाथों तक पहुँच गये हैं हथियार
और गिलास जिसमें भरा है जहर नशे का
जो हाथ मंदिर की घंटियाँ बजाने को उठा करते थे
आज भटक गए हैं...
परिवर्तन की यह आंधी कहाँ ले जाएगी
हमें... हम जा कहाँ रहे हैं...

हर संवेदन शील मन की यह चिंता है
और बेबुनियाद तो नहीं है न यह चिंता..?