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गुरुवार, जनवरी 26

समता की इक ढाल बना लें

समता की इक ढाल बना लें  


पुष्पों का मृदु हार बनें हम  

काँटों का चुभता ताज नहीं,

प्रीत सुरभि  हर सूं  बिखरायें  

उर बजे शोक का साज नहीं !


दुनिया आँख खोलकर देखें 

झर-झर अमिय निर्झरित होता,

समता की इक ढाल बना लें 

नादां  मन गर कंपित होता !


जीवन अभेद, जीवन अछेद्य

जग को अपना मीत बनायें, 

ले शिव-शक्ति का सदा आश्रय 

 कण-कण में उमंग बिखरायें ! 


अनदेखे  हर  बंधन छूटें 

मेरा-तेरा का महा बंध,  

कुछ भी नहीं, या हमीं सब कुछ  

फिर कैसा यह अंतरद्वंद्व !


हर मरीचिका छलना ही है  

छायाओं से कैसा डरना,  

भय की बेड़ी से जग बाँधे

उस प्रियतम से जुड़कर रहना  !