वही ख़ुदा उनमें भी बसता है उतना ही
रोटी-कपड़े की फ़िक्र नहीं होती जिनको
ख़ुदा की रहमत है कमी नहीं ज़रा उनको
चंद निवालों के लिए दिन-रात खटते हैं
कभी देखा भी है पसीना बहाते उनको
अपने हाथों से नई इमारतें गढ़ते
जा बसें उनमें ख़्वाब भी नहीं आये जिनको
वही ख़ुदा उनमें भी बसता है उतना ही
बड़ी प्यारी सी हँसी है मेहनत कशों की