कृष्ण की याद
जैसे कोई फूल खिला हो
अमराई में
जैसे कोई गीत सुना हो
तनहाई में
जैसे धरती की सोंधी सी
महक उठी हो
जैसे कोई वनीय बेला
गमक रही हो
या फिर कोई कोकिल गाये
मधु उपवन में
जैसे गैया टेर लगाये
सूने वन में
श्याम मेघ तिरते हो जैसे
नीले नभ में
झूमे डाल कदंब कुसुम की
नन्दन वन में
यमुना का गहरा नीला जल
बहता जाये
कान्हा यहीं कहीं बसता है
कहता जाये !
सुन्दर |
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंCyberdigital28.Blogspot.com
स्वागत व आभार!
हटाएंहाँ अपने अंतर्मन में.टटोलकर देखो
जवाब देंहटाएंदिखेगा उनका रूप
अहं ,मोह-माया,लोभ-क्रोध निकाल फेको
दमकेगा आत्म स्वरूप
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवाह अनीता जी....कितना खूबसुरती से कान्हा और उसके बिरज की छटा को उकेर दिया आपने
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अलकनंदा जी !
हटाएंबहुत सुंदर मनोहर
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