मंगलवार, मार्च 7

बादलों के पार


बादलों के पार
उठे धरा से छूने अम्बर
मेघपुंज के पार आ गए
छूटी पीछे दो की दुनिया
इक का ही आधार पा गए I

दूर कहीं है गंध धरा की
स्वर्णिम क्षण यह दृश्य अनोखा
ढका गया बादल से हर कण
दिखे कहीं न कोई झरोखा I

निर्मल नीले नभ की छाया
श्वेत मेघ तिरते झलकाते
मानो बिखरी शुभ्रा कपास 
या उड़तीं बगुलों की पातें I

हिमाच्छादित पर्वत माला
ज्यों मीलों दूर चली जाती
श्वेत बादलों की यह शैया
परीलोक की याद दिलाती I

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना है !

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  2. प्रकृति के मनोरम दृश्यों को साकार करती सुन्दर कृति । रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ अनीता जी !

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  3. उठे धरा से छूने अम्बर
    मेघपुंज के पार आ गए
    छूटी पीछे दो की दुनिया
    इक का ही आधार पा गए I
    ... जीवन मधुरास से मिठास घोलती सुंदर अनुपम रचना।
    होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐🖍️🖍️

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  4. सुंदर प्रकृति चित्रण भाव प्रवण सृजन।
    होली पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌷

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  5. दूर कहीं है गंध धरा की
    स्वर्णिम क्षण यह दृश्य अनोखा
    ढका गया बादल से हर कण
    दिखे कहीं न कोई झरोखा
    वाह!!!
    अप्रतिम सृजन ।

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन अनीता जी,होली की हार्दिक शुभकामनायें आपको

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  7. आहा, महादेवी वर्मा की याद दिला गया आपका गीत. वैसी माधुर्य, भाषा का सौष्ठव और वैसा ही रहस्यवाद.. नत हूं इस सृजन के आगे.

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