शनिवार, मार्च 11

एक पुकार बुलाती है जो

एक पुकार बुलाती है जो 


कोई कथा अनकही न रहे  

व्यथा कोई अनसुनी न रहे  , 

जिसने कहना-सुनना चाहा 

वाणी उसकी मुखर हो रहे   !


एक प्रश्न जो सोया  भीतर 

एक जश्न भी खोया भीतर, 

जिसने उसे जगाना चाहा 

निद्रा उसकी स्वयं सो रहे    ! 


एक चेतना व्याकुल करती 

एक वेदना आकुल करती,

जिसने उससे बचना चाहा 

पीड़ा उसकी सखी हो रहे ! 


कोई प्यास अनबुझी न रहे  

आस कोई  अनपली न रहे, 

जिसने उसे पोषणा चाहा 

सहज अस्मिता कहीं खो रहे  ! 


एक पुकार बुलाती है जो 

इक झंकार लुभाती है जो, 

जिसने उसको सुनना चाहा 

घुलमिल उससे एक हो रहे  !


6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-3-23} को "शब्द बहुत अनमोल" (चर्चा-अंक 4646) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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