सोमवार, अगस्त 9

प्रीत भरी पाती

प्रीत भरी पाती

श्वासें महकें  अंतर चहके, पल पल नव गीत बजें भीतर
जीवन जो भी भेंट दे रहा, स्वीकारें उत्साहित  होकर I

कभी-कभी ढक गया उजाला, कुछ भी नजर नहीं आता है 
खुशियों के पीछे-पीछे ही, गम का दूत चला आता है I

लेकिन बादल कब तक आखिर,अंशुमान को ढक पाए हैं
कब तक पर्वत रोक सकेंगे, तूफान से टकराए हैं I

चलते जाना है रस्ते पर, कंटकमय या पथरीला है
मंजिल दूर नहीं है साथी, अनथक थोड़ा सा चलना है I

खाली करके मन में भर लें, नए जोश औ' नए होश को
उपवन बन जाये मन आंगन, आतुर है सूरज उगने को I

हर उत्सव संदेशा लाया, थम कर थोड़ा भीतर झाँकें 
दुःख के पीछे छिपा हुआ जो, सुख के उस दरिया को पाके  I

ध्यान का फूल कली योग की, उर उद्यान में यदि खिलेगी
कृपा का बादल बरस रहा है, मंजिल हाथ थाम चलेगी I

अनिता निहालानी
९ अगस्त २०१०

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया रचना है बधाई स्वीकारें।

    ध्यान का फूल कली योग की, मन बगिया में यदि खिलेगी
    कृपा का बादल बरस रहा है, मंजिल शीघ्र अवश्य मिलेगी I

    जवाब देंहटाएं