गुरुवार, अगस्त 26

स्मृतियाँ

स्मृतियाँ

दिल के आँगन की मुँडेर पे 

यादों की गौरैया चहकी,

फूलों वाले इस मौसम में

मदमाती पुरवैया महकी !


स्मृतियों की सिर ओढ़ चुनरिया

मन राधा ने गठरी खोली,

बौर लदे आमों के वन में

इठलाती कोयलिया बोली !


सिंदूरी वह शाम सुहानी, 

बचपन जब हो गया था विदा,

कोई मेघ प्रीत बन बरसा, 

अंतर  उस पर हो गया फ़िदा !


बाबा की वह हँसती आँखें 

माँ का भीगा-भीगा दुलार, 

याद आ रही बरसों पहले 

भैया की अति मधुर मनुहार !


जीवन कितना बदल गया है  

इस मन का अलबम आज खुला,

फेरे वाली साड़ी का पर, 

यह फाल अभी तक नहीं खुला I



२६ अगस्त २०१०

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