स्मृतियाँ
दिल के आँगन की मुंडेर पे, यादों की गौरैया चहकी
फूलों वाले इस मौसम में, मदमाती पुरवैया महकी I
स्मृतियों की चुनर ओढ़े, मन राधा ने गठरी खोली
बौर लदे आमों के वन में, इठलाती कोयलिया बोली I
सिंदूरी वह शाम सुहानी, बचपन जब हो गया विदा
कोई मेघ प्रीत बन बरसा, मन उस पर हो गया फ़िदा I
बाबा की वह हंसतीं आँखें, माँ का भीगा-भीगा प्यार
याद आ रहा बरसों पहले, छलका भैया का दुलार I
जीवन कितना बदल गया, मन का अलबम आज खुला
फेरे वाली साड़ी का पर, अब तक नहीं है फाल खुला I
२६ अगस्त २०१०
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