कहाँ गया घनघोर घटा स्वर 
चमचम चमक रहा अम्बर पर 
छोड़े अविरत अस्त्र किरण शर, 
 क्रोधित रवि प्रचंड वेश धर
जला रहा मल ले अशुद्धि हर !  
गृह में छुपे सभी नारी-नर 
तपे ताप से पशु ढूँढें घर, 
सूखे नाले, नदिया, सरवर 
प्यासे पत्ते, झुलसे तरुवर ! 
जली रेत मरुथल सी माटी 
छिपे बिलों में मूषक, फणधर,
मुरझाये पुष्प से शिशु भी 
लौट रहे जो ले बस्ते घर ! 
जल पाकर भी तृषित रहे उर 
तप्त हुआ जल, बहता सीकर, 
उपवन सींचे प्रातः माली 
शाम पुनः फैलाता है कर ! 
भिगो-भिगो धरे वस्त्र शाक पर 
छींटे डाल करे भिंडी तर,  
भेजो बादल कोकिल गाये 
कहाँ गया घनघोर घटा स्वर ? 
अनिता निहालानी 
८ मई २०११ 

 
जल पाकर भी तृषित रहे उर
जवाब देंहटाएंतप्त हुआ जल, बहता सीकर,
उपवन सींचे प्रातः माली
शाम पुनः फैलाता है कर !
गर्मी के मौसम का सुंदर चित्रण. सुंदर गीत, मज़ा आ गया.
भयानक और भीषण गर्मी का शानदार चित्रण किया है ........प्रशंसनीय|
जवाब देंहटाएंभिगो-भिगो धरे वस्त्र शाक पर
जवाब देंहटाएंछींटे डाल करे भिंडी तर,
भेजो बादल कोकिल गाये
कहाँ गया घनघोर घटा स्वर ?
शब्दों के माध्यम से भीषण गर्मी का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है आपने.
सादर
गर्मी में ठन्डे का एहसास देती रचना...
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