गुरुवार, मार्च 8

महिला दिवस पर शुभकामनायें


महिला आरक्षण विधेयक - आजादी की ओर बढ़ते कदम

प्राचीन भारत का इतिहास नारी की गौरवमयी गाथाओं से भरा पड़ा है I हमारे पूर्वजों ने सदा नारी की मान-मर्यादा व अधिकारों की रक्षा को महत्व दिया था I उस काल में उन्हें समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त था I परिवार में उनका पद प्रतिष्ठापूर्ण था, कोई भी सामाजिक या धार्मिक कृत्य उनकी सम्मति के बिना नहीं हो सकता था, बल्कि रणक्षेत्र में भी वे पति का सहयोग करती थीं I समय बदला, भारत परतंत्र हुआ और नारियों की स्वतंत्रता का भी अपहरण हो गया I उनकी प्रेम, बलिदान और सर्वस्व समर्पण की भावना उनके लिये ही घातक सिद्ध हुई I पर्दा प्रथा को बढ़ावा मिला, समाज में महिलाओं का स्थान गौण हो गया, उन्हें शिक्षा से वंचित कर दिया गया I उनके सामाजिक जीवन का क्षेत्र सीमित कर दिया गया I कमोबेश आज भी भारत में विशेषकर गावों तथा छोटे शहरों में स्त्रियों की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है I आज समस्याओं का रूप भले बदल गया हो नारियों के लिये सम्मानित जीवन जीना आज भी बहुत कठिन है I उन्हें आर्थिक रूप से परावलम्बी रहना पड़ता है, अशिक्षा, कुपोषण, अस्वच्छता तथा स्वास्थ्य सम्बन्धित अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनके कारण न तो वे एक खुशहाल जीवन की कल्पना कर सकती हैं न ही अपने व्यक्तिगत जीवन में कोई मुकाम हासिल कर सकती हैं I उनकी प्रतिभाओं का विकास होना तो दूर रहा, उन्हें अपने महिला होने के कारण ही अपमान सहना पड़ता है I  
विश्व की आबादी का लगभग आधा भाग महिलाएँ हैं, लेकिन उनके हित के लिये नीतियों का निर्धारण पुरुष करते आये हैं I भारत ही नहीं विश्व भर की संसदों में महिलाओं को आज तक उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, पूरी दुनिया में केवल १७.५% महिलाओं की ही राजनीति में भागेदारी है I अमेरिका तथा योरप के देशों में २०% तथा अरब देशों में मात्र ९.६% महिलाएं ही संसद में भाग लेती हैं, भारत इस मामले में विश्व में १३४ वें स्थान पर आता है I भारतीय संसद में उंगलियों पर गिनी जा सकने के लायक महिलाएं हैं, यही हालत राज्यों की विधानसभाओं की है I
समाज में महिलाओं को सम्मान व समानता दिलाने के लिये राजनीति में उनकी भागीदारी तय करना बहुत जरूरी है I यह जग विदित है कि सदा से पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है I आज भी समाज में दहेज प्रथा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, विधवाओं पर होते अत्याचार, लड़कियों के साथ आये दिन छेड़-छाड़ व दुर्व्यवहार की समस्याएँ आम हैं I परिवार में पुत्र के जन्म पर जो खुशी महसूस की जाती है वह कन्या के जन्म पर नजर नहीं आती, नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर है, शिक्षा संस्थानों में भी यही हाल है, देश की ज्यादातर लड़कियों को अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा से पहले ही छोड़ देनी पड़ती है I आज भी महिलाएं वेतनमानों तथा स्वास्थय के मामले में काफी पीछे हैं, उनके साथ खुले आम भेद भाव हो रहा है, उनके लिये आर्थिक योजनाएं शुरू करने, नौकरियों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में स्थान आरक्षित करने की बहुत आवश्कयता है I कानून और व्यवस्था सुधारने की भी उतनी ही जरूरत है ताकि महिलाएं बाहर जाकर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. गावों में लडकियाँ आज भी विद्यालयी शिक्षा से वंचित हैं I इन सब कारणों से जरूरी है कि उन्हें संसद में सीधे हिस्सेदारी दी जाये, जिससे नीति निर्धारण में उनकी साझेदारी संभव हो सके क्योंकि चुनी हुई महिलाएं अपनी समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दे सकेगीं, अतः महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण अत्यंत आवश्यक है I
हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा और उनके संरक्षण के लिये व बराबरी का दर्जा देने के लिये दर्जन भर से ज्यादा कानून हैं, लेकिन इनके बावजूद उनका शोषण किसी न किसी रूप में होता आया है I संसद तथा विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी उनकी सुरक्षा तथा अधिकारों के लिये अब तक बनाये कानूनों में सर्वोपरि होगी I आज से सोलह वर्ष पूर्व १९९६ में  महिलाओं को संसद तथा विधानसभाओं में ३३% आरक्षण देने का मुद्दा उठा था, पर इतने वर्षों तक यह किसी न किसी कारण से लटकता ही आ रहा है I दो वर्ष पहले ९ मार्च २०१० को राज्यसभा में यह विधेयक पारित होने के बावजूद लोक सभा में इसे मंजूरी नहीं मिल पायी है I पंचायत राज्य और स्थानीय निकाय सम्बंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद महिलाओं की आवाज इस मसले पर और सशक्त हुई है I लगभग सभी राजनितिक दलों के चुनाव घोषणा पत्र में इस बिल को पास करने का वायदा किया जाता रहा है, लेकिन महिलाओं के आरक्षण को लेकर उनकी कथनी व करनी में बहुत अंतर है इसीलिए आज तक सफलता नहीं मिल सकीI सभी राजनितिक दल महिलाओं के जीवन में खुशहाली लाने के लिये इसे संसद में मन्जूरी दिलाने का आश्वासन तो देते हैं पर स्वार्थ वश कभी भी गम्भीरता से इस दिशा में उनके द्वारा प्रयास नहीं किये गएI इस विधेयक को पारित करने के लिये भारतीय संविधान में संशोधन करना पड़ेगा तथा इसे दो तिहाई बहुमत से पास करना जरूरी है I विरोध करने वाले नेता यह कहते हैं कि यदि यह बिल अपने वर्तमान स्वरूप में पास हो गया तो अगले कुछ ही वर्षों में लोकसभा में ९०% महिलाएं ही नजर आयेंगी I आज भी देश की राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्षी नेता, यू पी ए अध्यक्ष सभी पदों पर महिलाएं ही हैं, जो बिना आरक्षण के आयी हैं I वे यह भी कहते हैं कि निचली जातियों तथा अल्पसंख्यकों के लिये भी आरक्षण होना चाहिए, अन्यथा सभी सीटों पर उच्च वर्ग की पढ़ी लिखी महिलाओं का चयन निश्चित है I
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक को देश के लिये जरूरी बताते हुए शीघ्र पारित किये जाने की बात कही है, क्योंकि देश के विकास में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक भागीदारी हुए बिना आधी आबादी को न्याय मिलना असम्भव है I
आज हर क्षेत्र में महिलाओ के बढ़ते वर्चस्व ने यह साबित कर दिया है कि यदि अवसर मिले तो वे किसी मामले में भी पुरुषों की अपेक्षा कम नहीं हैं I यदि यह बिल पास हो जाता है तो संसद में ५४३ सीटों में से १८३ पर केवल महिलाएं चुनाव लड़ेंगी I ऐसा होने पर संसद का माहौल ही बदल जायेगा, वहाँ का स्तर ऊँचा होगा तथा संसदीय कार्य भी सुचारू रूप से होगाI राजनीति का अपराधीकरण रुकेगा I आज चुनावों में जिस तरह कालाधन खर्च किया जाता है तथा धांधली की जाती है, बाहुबल के आधार पर वोट हथियाए जाते हैं ऐसे में महिलाओं के लिये साफ-सुथरे साधन अपना कर संसद में पहुँचने के लिये आरक्षण के अलावा कोई मार्ग नहीं है I वास्तव में महिलाओं का राजनितिक सशक्तिकरण स्वयं में एक उद्देश्य ही नहीं है बल्कि असमानता पर आधारित समाज व्यवस्था में परिवर्तन लाने का एक साधन भी है I



5 टिप्‍पणियां:

  1. आपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    सादर

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  2. बहुत सार्थक लेख है अनीता जी...
    आपका शुक्रिया...
    आपको वुमंस डे की बधाई..

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    1. अनु जी, स्वागत ! आपका इस लेख को पढ़कर राय देने का शुक्रिया !

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  3. सुन्दर चिंतन ही नहीं वरन अनुसरण करने योग्य..

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