रविवार, जनवरी 13

महाकुम्भ के अवसर पर



अमृत मंथन

यह सारा ब्रह्मांड परम ऊर्जा से भरा कुम्भ है, सूर्य ज्योति कुम्भ है, नव ग्रह इस ऊर्जा को ग्रहण करने व वितरित करने हेतु बने कुम्भ हैं और धरा जीवन कुम्भ है. जीव प्रेम कुम्भ है. मानव देह के भीतर जिस घट-घट वासी परमात्मा का निवास है, वह स्वयं शांति, प्रेम, सुख, आनंद, शक्ति, पवित्रता और ज्ञान का कुम्भ है. ये सभी जिस मूल तत्व से बने हैं वह अमृत्तत्व है, छल-छल छलकता अमृत इन सभी से पल-पल इस सृष्टि में प्रवाहित हो रहा है. इसी की याद दिलाने न जाने कितनी सदियों से पुण्य भूमि भारत में चार पावन तीर्थों पर आयोजित किया जाता है कुम्भ महोत्सव. गंगा के तट पर हरिद्वार, त्रिवेणी तट पर प्रयाग, गोदावरी तट पर नासिक तथा क्षिप्रा तट पर उज्जैन में समय-समय पर ग्रह-नक्षत्र की गणना के अनुसार कुम्भ का आयोजन होता है.
इलाहबाद प्रयाग में होने वाला महाकुम्भ विश्वभर में अपनी विशालता और भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, जो बारह पूर्ण कुम्भों के बाद आता है, अर्थात पूरे एक सौ चवालीस वर्षों के बाद. इस वर्ष चौदह जनवरी, मकर संक्रांति के दिन से आरम्भ होने वाला यह पर्व दस मार्च शिवरात्रि के दिन तक चलेगा. पुराणों में कथा आती है, एक बार इंद्र द्वारा दुर्वासा ऋषि का अपमान करने पर उनके शाप के कारण देवता शक्तिहीन हो गए थे, असुर बलशाली होते जा रहे थे. देवताओं को विष्णु ने सुझाव दिया कि दानवों से मैत्री करके, मिलजुल कर वे दोनों सागर मंथन करें तो अमृत की प्राप्ति होगी, सागर मंथन में पहले हलाहल विष निकला जिसे शिव ने ग्रहण किया, जो कल्याणकारी हैं, सृष्टि के कण-कण में बसे हैं, जब अमृत कलश या कुम्भ मिला उसको प्राप्त करने के लिए पुनः देवों व असुरों में युद्ध होने लगा, पूरे बारह दिनों तक युद्ध चला, इस दौरान अमृत की कुछ बूँदें हरिद्वार, प्रयाग, नासिक तथा उज्जैन में गिरीं, जहां हर बारह वर्ष के बाद पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है. इस अमृत का वितरण किया मोहिनी रूपधारी विष्णु ने, अपनी-अपनी रूचि के अनुसार दोनों को उनका प्राप्य मिला.
यह माना जाता है कि उच्च लोकों को जाने का द्वार इन दिनों में खुल जाता है, साधकों की जन्मों की साधना सफल होती है और अमरत्व की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इस मेले में ऐसे अनेक साधु-संत भी आते हैं जो वर्षों से हिमालय की गुफाओं में निवास करते हैं, ऐसे किसी दुर्लभ संत से मिलने की आशा में भी दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं. जन-जन का सैलाब उमड़ता है जिसमें भेद-भाव भुलाकर मानव समूह एकत्र होते हैं, देश-विदेश के इतने बड़े जन समुदाय का एक साथ एक लक्ष्य के लिए एकत्र होना अपनी मिसाल अपने आप है.
अमृत ही उर्जा का स्रोत है, जो जीवन व्यापर के लिए परम आवश्यक है. कड़ाके की ठंड में शीतल बालू पर निवास, अति शीतल जल में स्नान करने के लिए ऐसी ही आध्यात्मिक ऊर्जा की आवश्यकता है. दुःख, दुर्बलता, मनो-मालिन्य, किसी भी तरह का विक्षेप इन सब को भुलाकर साधक कुम्भ का एक पर्व अपने भीतर भी मनाता है. भीतर ही देवता भी हैं और असुर भी, जब-जब सत्य का अपमान होता है, दैवीय गुण क्षीण हो जाते हैं, दुर्गुण प्रबल, तब संत जन कहते हैं आत्म मंथन करना चाहिए, जिससे आत्मा रूपी अमृत के कलश की प्राप्ति हो, आत्ममंथन से ही शक्ति प्राप्त होती है. इस ऊर्जा के कलश को पाकर भी यदि द्वंद्व समाप्त नहीं होता, अहंकार बढ़ जाता है, तब पुनः संत जन ही उस शक्ति के उपयोग का साधन बताते हैं. जिससे वास्तविक उत्सव का आयोजन होता है, सभी के जीवन में प्रसन्नता भर जाती है. जो दुःख अभी आए नहीं हैं उन्हें भी दूर करने के लिए साधक पुण्य एकत्र करते हैं, तीर्थों में स्नान करते हैं. जिससे मन के पूर्वाग्रह टूटते हैं, सुख-सुविधा का एक जो आकर्षण मानव को जड़ बना देता है, उससे छुटकारा मिलता है, प्रसन्नता की एक अनोखी धारा मन-प्राण को आप्लावित कर देती है.
मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा प्रभु के मंदिर तक ले जाने वाले इन चारों मार्गों पर चलना सुगम हो जाता है. सारा समाज जब एक ही उद्देश्य के लिए आया है तब मित्रता की एक अनदेखी डोर में सब बंध ही गए, विदेशी यात्री स्नेह की एक मशाल लिए ही भारत आते हैं और भारत वासी उसमें स्नेह चुकने नहीं देते. करुणा की तो धाराएँ ही बहती हैं, जहां दिन-रात अन्नदान, वस्त्र दान, ज्ञान दान चल रहा हो वहाँ कठोर हृदय भी पिघल जाते हैं. सम्पन्न ही नहीं विपन्न भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार तीर्थों में दान करते हैं. मुदिता तो हर एक के मुखड़े का आभूषण बन जाती है, अदृश्य सरस्वती की पावन धारा की तरह मानव मात्र की गहराई में जो आनंद कुम्भ छिपा है वह ऐसे आयोजनों में छलक ही जाता है. जो भी कमियां, अभाव या असुविधा होती है, जन उनकी उपेक्षा करना सीख जाते हैं. दृष्टि विशाल हो जाती है. मेले में ऐसे संतों का आगमन होता है जिनकी दृष्टि मात्र से भीतर के दोष जल जाते हैं, जो जीते जागते तीर्थ हैं, करुणा से भरे हैं. भारत की परम धरोहरों में से एक है यह कुंभ मेला इसकी गरिमा को बनाये रखना हर भारतीय का पुनीत कर्त्तव्य है.  

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति | शुभकामनायें . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  2. बढ़िया जानकारी...लोहिड़ी व मकर संक्रांति पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ

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    1. संध्या जी स्वागत है, आपको भी बधाईयाँ !

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    मकर संक्रान्ति के अवसर पर
    उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!

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  4. जीवन की मंगलमय ऊर्जा को जगाता सुन्दर आलेख- 1

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  5. सुन्दर जानकारी देता सटीक आलेख।

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  6. कल टी.वी. पर देखा तो एक अदृश्य इच्छा जग गयी महाकुम्भ के लिए..

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    1. इस इच्छा को पर लग जाने दें..इस बार हो ही आयें कुम्भ में...मुझे भी जाना है क्या पता हम वहीं मिलें..

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