बुधवार, नवंबर 6

कण-कण सृष्टि का यह गाता



कण-कण सृष्टि का यह गाता

कुछ यादें, कुछ बातें मनहर
याद दिलाये आज का पल हर
उच्च भाल पर तिलक सज रहा
नयनों में छाया वह मंजर !

‘भाई’ शब्द में घुली मिठास
हर पल बहना को है आस,
सदा सुखी हो संग भाभी के
बढ़ा करे श्रद्धा-विश्वास !

एक वाटिका के पुष्प हैं
संग-संग झेले ऋतु आघात,
संग-संग पायी ममता प्रीति
साझे थे कितने प्रभात !

बिन बोले संवाद है घटता
बचपन के साथी जो ठहरे,
जीवन क्रम में भले दूर हों
सूत्र बंधे हैं भीतर गहरे !

शुभ दिन दीपपर्व का अंतिम
इक संदेश बांटता जाता,
ज्योति प्रेम की कभी बुझे न

कण-कण सृष्टि का यह गाता !  

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