शुक्रवार, फ़रवरी 15

तृष्णा दुष्पूर है


तृष्णा दुष्पूर है

कश्मीर को भारत से
अलग करने की तृष्णा की आग में
जलता हुआ पाकिस्तान
बाँट रहा है वही हिंसा की आग
 विश्व देख रहा है विनाश के इस पागलपन को
कभी धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला
 कश्मीर आज जल रहा है
और जल रहे हैं अमन बहाल करने वाले वीर
महर्षि कश्यप की तप स्थली रही यह घाटी
जो वेदों के गान से गुंजित थी
रक्त रंजित है आज
जो कभी सम्राट अशोक के साम्राज्य का भाग थी
विक्रमादित्य के कदम भी पड़े थे जहाँ
मौजूद हैं जहाँ गणपति और भवानी के मन्दिर
महाभारत काल से
ऋषि परंपरा और सूफी इस्लाम की
शांति पूर्ण सहभागिता से पोषित
सिखों के महाराजा हरिसिंह की पावन धरा
 आज पुकारती है इंसाफ के लिए
दम घुटता है उसका
बमों और हथियारों के साये में
जीने को विवश हैं जहाँ लोग
भारत की शान और मान
पूछती है काश्मीर की यह घाटी
न जाने कितने वीरों को और बलिदान देना होगा
न जाने कब यहाँ शांति का फूल खिलेगा
प्रश्न ही प्रश्न हैं उत्तर कौन देगा ..?


6 टिप्‍पणियां:

  1. वहशियत की हद पार कर गई.....वीर शहीदों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि,

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    1. वाकई अब पानी सिर के ऊपर से निकलने लगा है

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  2. यथार्थ ...
    बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया

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  3. निरंतर चुभता एक काँटा- अब निकलना ही चाहिए.

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    1. हाँ, हर भारतवासी के दिल की यही पुकार है, अब शीघ्र कोई हल निकलना चाहिए

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