बुधवार, नवंबर 6

भोर के तारे सा छुप जाएगा जग


भोर के तारे सा छुप जाएगा जग 



बंद आँखों से जमाना देखते हैं हम कहाँ अक्सर हकीकत देखते हैं चाह की चादर ओढ़ायी थी किसी ने यूँही अपना हक समझ कर देखते हैं दोनों हाथों से जकड़ चलते रहे दिल को ही बढ़कर खुदा से देखते हैं जिस राह पर दुश्वारियां मंजिल नहीं ख़्वाब उस के ही दिलों में देखते हैं भोर के तारे सा छुप जाएगा जग पत्थरों में निशां उसके देखते हैं जो सुकूं का, है समंदर प्रीत का भी उसे सदियों दूर से ही देखते हैं आसमां है बदलियां, बारिशें, धूप जो जरूरी जुड़ उसी से देखते हैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें