शनिवार, अक्तूबर 24

व्यक्त वही अव्यक्त हो सके

 व्यक्त वही अव्यक्त हो सके 

हे वाग्देवी ! जगत जननी  

वाणी में मधुरिम रस भर दो, 

जीवन की शुभ पावनता का 

शब्दों से भी परिचय कर दो !


भाषा का उद्गम तुमसे है 

नाम-रूप से यह जग रचतीं,

ध्वनि जो गुंजित है कण-कण में 

नव अर्थों से सज्जित करतीं !


शिव-शिवानी अ, इ में समाए

क से म पंचम वर्गीय सृष्टि,

हर वर्ण में अर्थ भरे कई

मिले शब्दों से जीवन दृष्टि !


कलम उठे जब भी कागज पर 

व्यक्त वही अव्यक्त हो सके, 

निर्विचार से जो भी उपजे 

भाव वही प्रकटाये मानस !


हे देवी ! पराम्बा माता 

कटुता रोष, असत् सब हर ले, 

गंगा की निर्मलधारा सम 

रचना में करुणा रस भर दे !


6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत याचना जगजननी से !! बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. अनीता जी, इतनी खूबसूरती से संकल्प और मां का आशीर्वाद ल‍िया क‍ि -
    कलम उठे जब भी कागज पर

    व्यक्त वही अव्यक्त हो सके,

    निर्विचार से जो भी उपजे

    भाव वही प्रकटाये मानस !... बहुत सुंंदर

    जवाब देंहटाएं