शनिवार, फ़रवरी 12

तुम हो

तुम हो 


तुम हो, तभी तो 

फूल खिलते हैं 

मौसम बहारों के  

लौट आते 

तितलियाँ मंडराती हैं और 

कूजती है कोकिल अमराई में 

सुना ना तुमने !

तुम हो, तभी तो 

दूर कोई सितारा 

टूट कर चमक दिखाता है 

पपीहा राग सुनाता 

प्रपात खिलखिलाता है 

एक नज़र भर देखा 

बादल बरस गया झूम कर 

एक आवाज़ भर दी थी 

सागर में लहरें  उठीं  

लिया चाँदनी को मुट्ठी में भर 

तुम हो, तभी तो 

जीवन में नया अर्थ खिलता  है 

तुम्हारे संग साथ से 

यह जग 

हर रोज़ नया होकर मिलता है  !


4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय अनीता जी। संगी साथ हो तो जीवन का बसन्त है। सब रंग जीवन के मनमीत के साथ ही होते हैं। प्रेमिल अनुभूतियों से सजी सहज, सरस और मधुर रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌷🌷

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  2. 'तुम' का ऐसे खिलना अप्रतिम सौन्दर्य ही तो है। अति सुन्दर सृजन।

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