सोमवार, फ़रवरी 28

इतना सा सच अनुभव कर ले

इतना सा सच अनुभव कर ले

दुनिया बहुत पुरानी फिर भी
नई नवेली दुल्हन सी है,
मानव अभी-अभी आया है
हुई पुरानी उसकी छवि है !

हर सुबह कुदरत नवीन हो 
पुनर्नवा जैसे हो जाती ,
विस्मित होता देख इसे जो
नूतन उसका उर कर देती !

वृक्ष, पवन, पौधे, पर्वत, नद 
सहज हुए सुख बाँटा करते,
मानव जग में बहुरूप धरे 
खुद से दूर कहीं खो जाते  !

जहाँ सृष्टि विनाश भी होगा 
कुदरत सहज भाव से सहती,
 मानव का उर भयभीत सदा 
पल-पल मृत्यु छलावा देती !

किंतु न जाने खुद को शाश्वत 
नश्वरता का जोर नहीं है,
इतना सा सच अनुभव कर ले
उसका कोई छोर नहीं है !

जीवन से भी चूक गया मन 
भय, आशंका, अकुलाहट में,
स्नेहिल धारा शुष्क हो गयी 
अंगारों में घबराहट के !

सदा नि:शंक खिला जो उर हो 
जीवन का रस उसे मिलेगा,
रस की धारा झरे निर्झर सी 
बस उसमें से प्यार बहेगा !

8 टिप्‍पणियां:

  1. सत्य यह है कि भय, आशंका, अकुलाहट जैसे उद्वेगों से त्रस्त मन आपके भावों से बहती रस की धारा में बहकर नव ऊर्जा से भर जाता है। ये अनुभव स्वयं ही स्वीकार करता है।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार.१ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. जी नमस्ते,
      आपकी लिखी रचना मंगलवार १ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
      पांच लिंकों का आनंद पर...
      आप भी सादर आमंत्रित हैं।
      सादर
      धन्यवाद।

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  3. सदा नि:शंक खिला जो उर हो
    जीवन का रस उसे मिलेगा,
    रस की धारा झरे निर्झर सी
    बस उसमें से प्यार बहेगा !

    –बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  4. सदा नि:शंक खिला जो उर हो
    जीवन का रस उसे मिलेगा,
    रस की धारा झरे निर्झर सी
    बस उसमें से प्यार बहेगा !

    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।।

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  5. किंतु न जाने खुद को शाश्वत
    नश्वरता का जोर नहीं है,
    इतना सा सच अनुभव कर ले
    उसका कोई छोर नहीं है !

    वाह!!!!

    जीवन से भी चूक गया मन
    भय, आशंका, अकुलाहट में,
    स्नेहिल धारा शुष्क हो गयी
    अंगारों में घबराहट के !
    बहुत सटीक सुन्दर एवं लाजवाब ः

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  6. अमृता जी श्वेता जी, संगीता जी, सुशील जी, सुधा जी व विभा जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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  7. काश इसक आत्मसात कर सकें ...
    इस विराट के सामने हम कण भी नहीं ...

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