बुधवार, जून 8

छुए जाता है पवन ज्यों

छुए जाता है पवन ज्यों 


ज़िंदगी पल-पल गुजरती 

रूप निज हर क्षण बदलती, 

 जैसे मिले, स्वीकार लें 

देकर प्रथम, अधिकार लें ! 


व्यर्थ ही हम जूझते हैं 

बह चलें सँग धार के यदि, 

ऊष्मा भाव की खिल के 

मुक्त होगी निज व उनकी !


चार दिन का साथ है यह 

क्यों यहाँ ख़ेमे लगाएँ, 

छुए जाता है पवन ज्यों 

इस जहाँ से गुजर जाएँ !


17 टिप्‍पणियां:

  1. चार दिन का साथ है यह

    क्यों यहाँ ख़ेमे लगाएँ,

    छुए जाता है पवन ज्यों

    इस जहाँ से गुजर जाएँ !

    काश इतना निःस्पृहः राह पाएँ ।।
    बहुत खूबसूरत रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मन में यह भाव जगे, शेष सब हो ही जाता है, स्वागत व आभार!

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.06.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4456 में दिया जाएगा| मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 9 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! निर्लिप्त निर्विकार।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बहुत आभार कुसुम जी!

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह स्वीकारना है सहज भाव से !!बहुत सुंदर !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस अनुपम स्वीकार भाव के लिए स्वागत व आभार अनुपमा जी!

      हटाएं
  8. चार दिन का साथ है यह
    क्यों यहाँ ख़ेमे लगाएँ,
    छुए जाता है पवन ज्यों
    इस जहाँ से गुजर जाएँ !
    सचमुच, व्यर्थ ही हम जूझते हैं!!!


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुंदर प्रतिक्रिया हेतु स्वागत व आभार मीना जी !

      हटाएं
  9. जीवन निर्लिप्त हो सके तो जीवन को आधार मिल जाता है ...

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने ।

    जवाब देंहटाएं