बुधवार, जून 22

नदिया ज्यों नदिया से मिलती

नदिया ज्यों नदिया से मिलती  

हर भाव तुझे अर्पित मेरा 

हर सुख-दुःख भी तुझसे संभव, 


यह ज्ञान और अज्ञान सभी 


तुझसे ही प्रकटा सुंदर भव !



तू बुला रहा हर आहट में 


हर चिंता औ' घबराहट में, 


तूने थामा है हाथ सदा 


आतुरता नहीं बुलाहट में !



हो स्वीकार निमंत्रण तेरा


तेरे आश्रय में सदा रहूँ, 


अब लौट मुझे घर आना है 


तुझ बिन किससे यह व्यथा कहूँ !



‘​​मैं’ तुझसे मिलने जब जाता 


मौन मौन में घुलता जाये, 


शब्द हैं सीमित मौन असीम 


वही मौन ‘तू’ को झलकाए !



‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता 


जगत दिखा जब मिलने जाए, 


खुद से अनजाना ही रहता 


वक्त का पहिया चलता जाए !



नदिया ज्यों नदिया से मिलती 


सागर में जा खो जाती है, 


‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ  


कोई खबर नहीं आती है !





15 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भाव ...... आत्मा और परमात्मा का मिलन भाव खूबसूरती से लिखा ।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23.6.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4469 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. ‘मैं’ खुद को कभी लख न पाता

    जगत दिखा जब मिलने जाए,
    प्रभु कृपा से ही सम्भव है खुद को लख पाना...
    लाजवाब सृजन।

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  5. नदिया ज्यों नदिया से मिलती

    सागर में जा खो जाती है,

    ‘मैं’ ‘तू’ में सहज विलीन हुआ

    कोई खबर नहीं आती है !

    आपकी कविताओं के भाव सुंदर शांत समृद्ध जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। आभार दीदी ।

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  6. बहुत ही सुंदर भावों की अभिव्यक्ति।
    सादर

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